आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में हम सभी मंगल पांडेय को जानते हैं, पर वास्तविकता यह है कि इसकी पटकथा लिखी थी मातादीन भंगी नाम के एक दलित ने।
वैसे तो 1857 की क्रांति की पटकथा 31 मई को लिखी गई थी, लेकिन मार्च में ही विद्रोह छिड़ गया। दरअसल जो जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म के लिए हमेशा अभिशाप रही, उसी ने क्रांति की पहली नीव रखी।
हुआ यह था कि बैरकपुर छावनी कोलकत्ता से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर था। फैक्ट्री में कारतूस बनाने वाले मजदूर मुसहर जाति के थे। एक दिन वहां से एक मुसहर मजदूर छावनी आया। उस मजदूर का नाम माता दीन भंगी था। मातादीन को प्यास लगी, तब उसने मंगल पांडेय नाम के सैनिक से पानी मांगा। मंगल पांडे ने ऊंची जाति का होने के कारण उसे पानी पिलाने से इंकार आकर दिया।
कहा जाता है कि इस पर माता दीन भंगी बौखला गया और उसने कहा कि कैसा है तुम्हारा धर्म जो एक प्यासे को पानी पिलाने की इजाजत नहीं देता और गाय जिसे तुम लोग मां मानते हो, सूअर िजससे मुसलमान नफरत करते हैं, लेकिन उसी के चमड़े से बने कारतूस को मुंह से खोलते हो। मंगल पांडेय यह सुनकर चकित रहे गए। उन्होंने मातादीन को पानी पिलाया और इस बातचीत के बारे में उन्होंने बैरक के सभी लोगों को बताया। इस सच को जानकार मुसलमान भी बौखला उठे।
इसके बाद मंगल पांडेय ने विद्रोह कर दिया। मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिन्गारी ने ज्वाला का रूप ले लिया। एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में सैनिकों ने बगावत कर दिया। बाद में क्रांति की ज्वाला पूरे उत्तरी भारत में फैल गई। बाद में अंग्रेजों ने जो चार्जशीट बनाई उसमें पहले नाम मातादीन भंगी का था।
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